Saturday, November 10, 2007

यादों का नासूर...........

ज़ख्म दिया था जो तूने, नासूर हो चला है।
तू थी तो होश में था, अब सुरूर हो चला है।
बावकूफ़ बेशक तू किसी और की हो महबूबा।
मगर दिल तेरे प्यार में मजबूर हो चला है।

तेरी यादें जीने का सहारा अब हो चुकी शायद
मुहब्बत की ख्वाहिशें कहीं खो चुकी शायद
तेरे हुस्न तेरे अंदाज़ से महकती थी जो शामें
हर वो शाम, वो लम्हा, मुझसे दूर हो चला है।

तू थी तो होश में था, अब सुरूर हो चला है।
ज़ख्म दिया था जो तूने, नासूर हो चला है..........................


कभी कभी उसे याद करता हूँ तो दिल में लोगों के हज़ारों सवाल आते हैं जिनके जवाब मैं बरसों तलाशता रहा.................

लोग कहते हैं कुछ कमी थी तुझमें
मगर दिल ये मानने को तैयार नहीं।
पूछ लूं तुझसे कि क्या कमी थी मुझमें
मगर आज इतना भी मुझे इख्तियार नहीं।

Friday, October 26, 2007

तुझसे मुहब्बत करना मेरी खता बन गया है

मेरा तुझसे यूँ दूर रहना
अब एक नशा बन गया है
दर्द क्या सताएगा हमें
दर्द ही अब दवा बन गया है

ढूँढता रहा तेरे जाने के बाद
मुहब्बत को चेहरा दर चेहरा
तुझे प्यार करना मानो
मेरी सबसे बड़ी ख़ता बन गया है

Sunday, October 21, 2007

दिल का हाल लिख रहा हूँ ......

आज एक अरसे के बाद फिर
अपने दिल का हाल लिख रहा हूँ।
गुज़ारे हैं मैनें जो तेरे जाने के बाद
वो हर लम्हा, दिन, साल लिख रहा हूँ।

अक्सर ये लगता है मुझे
कि तू अब भी मेरे साथ है
तन्हाई में ये महसूस होता है
मानो मेरे हाथों में तेरा हाथ है
मुहब्बत का ख़त है और आंसुओं की कलम
फिर से तेरा ख्याल लिख रहा हूँ
आज एक अरसे के बाद फिर
अपने दिल का हाल लिख रहा हूँ..............


कई बार अपने ही दिल से पूछता हूँ

मेरे ख्याल से कभी
क्या तू भी मुस्कुराती होगी
उन लम्हों का अहसास, बीते वक्त की याद
क्या तुझे अब भी सताती होगी।
बरसों पहले दे चुकी तू जिनके जवाब
न जाने क्यूं फिर से वही सवाल लिख रहा हूँ
आज एक अरसे के बाद फिर
अपने दिल का हाल लिख रहा हूँ..............

Tuesday, August 7, 2007

कौन चाहेगा तुम्हें मेरी तरह.....

सोचता हूं तुमको तो बहुत मजबूर होता हूं।
तुम्हारे पास होकर भी मैं तुमसे दूर होता हूं।

अपने हाथों से तुम्हें छू तो नहीं सकता
मगर ग़म की हर शाम तेरे ख़यालों में खोता हूं।

मेरी किस्मत, मेरी मुहब्बत और मेरी ख़्वाहिश
इन मोतियों को जब एक माला में पिरोता हूं।

तू कितनी ख़ूबसूरत दिखेगी इन मोतियों की माला में
आखों में ये सपना रोज़ ले के सोता हूं।

तूने तो एक आंसू ना बहाया होगा कभी मेरी ख़ातिर
दिल में तेरी याद लिए मैं रोज़ रोता हूं

सोचता हूं तुमको तो ............

Friday, April 20, 2007

वो आज भी चाहे मुझे

सोचता हूँ हर पल भुला दूं उसे
दर्द जिसका दिल में लिए फिर रहा हूँ
मगर लगता है ये सोच कर
अपनी नज़रों से खुद ही गिर रहा हूँ

मेरी ये तमन्ना नहीं कि वो आज भी चाहे मुझे
या मेरे दिल का हाल कोई जा कर बताये उसे
लेकिन जिन्दगी से इतनी सी उम्मीद लगा रखी है
कि मुश्किल लम्हों में ये एहसास हो उसे ..........

कोई था जो उसे चाहता था इस तरह
जैसे जिन्दगी धड़कनों को चाहती है
कभी किसी रोज़ वो खुद से कहे
वो बीती कहानी बहुत याद आती है
लेकिन मेरी ये तमन्ना नहीं कि वो आज भी चाहे मुझे
या मेरे दिल का हाल कोई .................