Wednesday, December 9, 2009

ये कैसी चाहत...?

हकीकत से वो कोसों दूर
मैं ख्वाबों में नहीं रहता
बोलना उसे नहीं भाता
तो चुप मैं भी नहीं रहता

कहानी है ये चाहत की
मुहब्बत की अदावत की

मेरी सोच की दस्तक
मेरी राहों का कोई पत्थर
कहीं उसे न छू जाए
वो मुझसे दूर न जाए

कहानी है ये चाहत की
मुहब्बत की अदावत की

वो कहती है मैं कैसे भूलूं
मेरे कल के वो लम्हे
मैं अपने कल को भूला हूं
बस उसको याद कर करके

कहानी है ये चाहत की
मुहब्बत की अदावत की

उसकी आंखों में सपना है
मुझे तो सच से लड़ना है
साथ होने से भी पहले
हमें बस साथ चलना है।

कहानी है ये चाहत की
मुहब्बत की अदावत की

Saturday, July 18, 2009

पुराना हिसाब बाक़ी है.....

कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....
किसी की मुहब्बत को रुसवा किया था
शायद उसी ख़ता का अंजाम बाकी है...
जाम बिखरे हैं ज़िंदगी में ग़मों के
साथ देने को बस नहीं कोई साक़ी है
कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....


वो भी तो तडपी होगी एक अरसे तक
अब उसकी आहों का अहसास बाक़ी है
मैं जानता हूं मेरे नसीब में खुशी नहीं
अब तो बस मौत का इंतज़ार बाक़ी है
कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....
किसी की मुहब्बत को रुसवा किया था
शायद उसी ख़ता का अंजाम बाकी है...

Friday, July 17, 2009

ये कैसी उलझन?

ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर.....मगर मेरे दिल में समा रही है

दीदार जब उसका आंखों में नहीं था
मैं दिन का वो पल तलाश रहा हूं.....
जिसके ख्वाब से भी घबरा जाता हूं मैं
रात भर जागकर वो कल तलाश रहा हूं।
वो मेरी बाहों से दूर सांसे ले रही है
ये सोचकर ही मेरी नींद जा रही है......
ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर...मगर मेरे दिल में समा रही है

दर्द हद से बढ़ गया तो छलक रहा है
न जाने ये घड़ी कैसा इम्तिहान ले रही है...
खुदा का यकीन हुआ नहीं ताउम्र जिसे
वो ज़ुबान हर पल खुदा का नाम ले रही है।
ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर...मगर मेरे दिल में समा रही है

Saturday, June 27, 2009

कभी समझ सको तो......


कभी समझ सको तो कोशिश करना
उन पलों की गहराईयों को समझने की....

जब मेरे कांपते हाथ
ढूंढते हैं तेरे जिस्म का सहारा...
तेरे होठों के मेरे होठों से छू जाने भर से
मिलता है मेरी अनबुझी प्यास को एक किनारा
जब तेरी जुल्फों की छांव में प्यारा सा वक्त
एक ख्वाब की तरह गुज़र जाता है
वो तेरा शरमा के मेरे सीने से लिपट जाना
कैसे कहूं...... मुझे कितना तड़पाता है.....

कभी समझ सको तो कोशिश करना
उन पलों की गहराईयों को समझने की....

मुझे अब भी याद है वो हाथ तुम्हारा
जो कशमकश में था और बेचैन भी
जो उठा था मेरे हाथ को बताने के लिये
कि रुक जा तेरी हद अब दूर नहीं
मगर दिल ने कहा मुझे ये मंज़ूर नहीं .....

कभी समझ सको तो कोशिश करना
उन पलों की गहराईयों को समझने की....

वो सिसकियां... वो इशारे... वो सुबकियां तुम्हारी
ज़िंदगी भर यादों में रहेंगे हमारी
वो सोयी सी आंखों से मदहोश करना
वो कांधे से सरकती जवानी तुम्हारी
मेरी गोद में अकसर तुम्हारा सो जाना
हकीकत और ख्वाबों की लंबी कहानी......

कभी समझ सको तो कोशिश करना
उन पलों की गहराईयों को समझने की....
जब मेरे कांपते हाथ
ढूंढते हैं तेरे जिस्म का सहारा...

Sunday, June 14, 2009

हम भी शौक फ़रमा रहे हैं...

ग़म इस बात का नहीं
कि हम भी मय का शौक फ़रमा रहे हैं....
बदनसीबी बस इतनी
कि एक का ग़म भुलाने के लिए
दूसरी को गले लगा रहे हैं....

लोग कहते हैं कि नशा इस शराब में है
हम तो बरसों से उनकी याद में ही
होश गंवा रहे हैं...........

ग़म इस बात का नहीं
कि हम भी मय का शौक फ़रमा रहे हैं....

तुमने शायद हकीकत तो समझी मुहब्बत की
हम तो आज भी
ख्यालों में ही जिये जा रहे हैं......

ग़म इस बात का नहीं
कि हम भी मय का शौक फ़रमा रहे हैं....

ये मालूम है हमको कि मंज़िल लौटती नहीं
गुज़री हुई राहों पे दोबारा
फिर भी न जाने क्यूं
इंतज़ार किये जा रहे हैं....किये जा रहे हैं....

ग़म इस बात का नहीं
कि हम भी मय का शौक फ़रमा रहे हैं....

लोग हंसते हैं मेरे ग़मों पर आज भी शायद
पर उसका प्यार, उसकी चाहत
मुझे आज भी रुला रहे हैं.....

ग़म इस बात का नहीं
कि हम भी मय का शौक फ़रमा रहे हैं....

Thursday, June 11, 2009

मुहब्बत तुम्हें भी होने लगी है....

तुम बस इतना भर कह देते हमसे
कि मुहब्बत तुम्हें भी होने लगी है....
आईना टूटा जो तेरी हंसी की खनक से
उसी हादसे से हमको भी ये खबर लगी है....

तुम्हारी निगाह को उठते नहीं देखा कभी
शायद वही एक तूफां तेरे दिल में दबा है।
तेरी खामोशी को समझता रहा बेरुखी
बेपर्दा तेरा हुस्न आज क्या माजरा है।
ढलते आंचल से वास्ता हो शायद
मदहोश आंखें तेरी नम सी होने लगी हैं...

तुम बस इतना भर कह देते हमसे
कि मुहब्बत तुम्हें भी होने लगी है....

तेरे हर कदम पर न धडकन चलती
तेरी खामोशियों पे न मैं बेज़ार होता
तेरी जुल्फों में न अंधेरी रात दिखती
न तेरे चेहरे पे माह का दीदार होता
इंतज़ार शायद इतना लंबा न होता
तेरे इकरार की आस भी खोने लगी है....

तुम बस इतना भर कह देते हमसे
कि मुहब्बत तुम्हें भी होने लगी है....
आईना टूटा जो तेरी हंसी की खनक से
उसी हादसे से हमको भी ये खबर लगी है.....

Wednesday, May 13, 2009

तेरी यादों को आखिरी सलाम.....

शायद यही मेरा आखिरी सलाम हो तुझको
शायद यही मेरा आखिरी पैगाम हो तुझको

मेरा हर लफ़्ज तेरी रुह में समा जाए
शायद यही मेरे प्यार का इनाम हो मुझको
इस दुनिया में भरोसा बस अपनों से मिलता है
शायद यही इस रिश्ते में दुश्वार था मुझको

हमने बहुत खोया है किसी को दिल देकर
खुदा ना करे कभी किसी से प्यार हो तुमको........

ये शमां मेरे दिल में यूं ही जलती रहे
मगर इस बात का न कभी इकरार हो मुझको
मेरी ज़िंदगी की सब खुशियां तेरे नाम हो जायें
न कभी किसी ग़म का दीदार हो तुझको

हमने बहुत खोया है किसी को दिल देकर
खुदा न करे कभी किसी से प्यार हो तुझको..........