Saturday, November 10, 2007

यादों का नासूर...........

ज़ख्म दिया था जो तूने, नासूर हो चला है।
तू थी तो होश में था, अब सुरूर हो चला है।
बावकूफ़ बेशक तू किसी और की हो महबूबा।
मगर दिल तेरे प्यार में मजबूर हो चला है।

तेरी यादें जीने का सहारा अब हो चुकी शायद
मुहब्बत की ख्वाहिशें कहीं खो चुकी शायद
तेरे हुस्न तेरे अंदाज़ से महकती थी जो शामें
हर वो शाम, वो लम्हा, मुझसे दूर हो चला है।

तू थी तो होश में था, अब सुरूर हो चला है।
ज़ख्म दिया था जो तूने, नासूर हो चला है..........................


कभी कभी उसे याद करता हूँ तो दिल में लोगों के हज़ारों सवाल आते हैं जिनके जवाब मैं बरसों तलाशता रहा.................

लोग कहते हैं कुछ कमी थी तुझमें
मगर दिल ये मानने को तैयार नहीं।
पूछ लूं तुझसे कि क्या कमी थी मुझमें
मगर आज इतना भी मुझे इख्तियार नहीं।

4 comments:

Anonymous said...

Itni mohabbat ,sacchmei kitni lucky hogi wo jo bhi thi
bt that was past so try 2 4get dat n start living in present
don let go d one who is there n hav same feelings 4 u, which u hav 4 dat gal whosoever she was :)

Anonymous said...

jhooth, apne pyaar ko yun batakar tum us ladki ka mazaak bana rahe ho. khush ho phir bhi apne aapko ye sab likh kar udaas bata rahe ho.

Anonymous said...

जो बीत गई सो बात गई माना वो बेहद प्यारा था, अंबर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे जो टूट गए फिर कहां मिले पर उन टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है....इन पंक्तियों से आप कितना समझ पाते है ये तो पता नहीं लेकिन शायद आपने भी किसी की भावनाओं की कद्र नहीं की होगी....रोशनी को अंदर लाने के लिए एक छोटा झरोखा ही काफी है...बीते हुए समय को मत पकड़ो तकलीफ तुम्हें ही होगी..

Rupender Dhanda said...

Hello ,Rupender Dhanda here , i found ur blog in google search ....how's the life dost