Monday, October 4, 2010

वो ख़ामोश क्यूं है?

खामोश लबों ने समझायी ज़िंदगी की रफ़्तार मुझे
यारों की महफ़िल में जब दूरियों का अहसास हुआ

उसके चेहरे की हंसी और चहक आज भी याद है
चुप से वो इस बार मिले तो दिल बहुत उदास हुआ

देखता रहा बेसब्र सी नज़रों से उसकी तरफ़
हर पल उसकी निगाह के उठने का इंतज़ार रहा

बस वही तो है ज़िंदगी में जिसका अहसान लिया
न चुका पाने का दर्द अब भी बरकरार रहा

वो ज़िंदगी में बहुत आगे निकल आये हैं शायद
हमें ही न जाने क्यों पुरानी यादों का एतबार रहा

ग़म की अब कोई दवा हो भी तो भला कैसे
न पहले सी बात रही, न पहले सा यार रहा.....

खामोश लबों ने समझायी ज़िंदगी की रफ़्तार मुझे
यारों की महफ़िल में जब दूरियों का अहसास हुआ

Tuesday, June 22, 2010

तू यहां होती तो बताता तुझको

तू यहां होती तो बताता तुझको
कैसे जी रहा हूं तुम्हारे बिना
दोस्त देते हैं ताना तेरे नाम का
तेरी याद है, तू नहीं है यहां......
.
तुझसे ज्यादा तो चाहा नहीं कुछ भी
तू होती नहीं कभी मेरे दिल से जुदा
हालात ऐसे कभी देखे नहीं मैंने
जैसे आज हो गये हैं तेरे बिना
तू यहां होती तो बताता तुझको.....
.
फिर भी क्यूं चाहता हूं तुझे
तेरे ख़्यालों से क्यूं है वास्ता
क्यूं आज भी तेरी यादों में रहता हूं
कैसा है हमारा ये रिश्ता...
.
तू यहां होती तो बताता तुझको
कैसे जी रहा हूं तुम्हारे बिना......

Sunday, April 4, 2010

कल रात मैंने एक सपना देखा

सपनों की कोई सरहद नहीं होती इसलिए जो जागते हुए दिल नहीं सोच पाता, सपनों में अकसर वो ख्याल आ जाते हैं। ऐसा ही एक ख्याल लिख रहा हूं।


कल रात मैंने एक सपना देखा
पहली बार इस सपने में न कोई लडकी थी
न यार दोस्त थे और न मां-बाप थे।
इन सबसे कुछ हटकर कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा


देखी वो जंगे आज़ादी, ख़ून से लथपथ वो वादी
देखा वो मिटा हुआ सिंदूर, वो टूटी हुई चूड़ियां
मां की आंखों के टूटे हुए सपने देखे
और अंदर से टूट चुके बाप का तड़पना देखा
जी हां, कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा


आज़ादी की लड़ाई भी देखी, शहीदों की चिताएं भी देखी
सेनानियों का जुनून देखा और आज़ादी का सुकून देखा
देश की करंसी पर बैठे उन महान नेताओं को देखा
जिन्होंने आज़ाद मुल्क को दो टुकड़ों में फेंका
स्वतंत्रता संग्राम के उन सेनानियों को देखा
जिन्होंने सिर पर लाठियां और सीने पर गोलियां खाई
तो देखा इस महासंग्राम के उन नेताओं को भी
जिन्हें कभी खंरोच तक नहीं आई
जो इज्ज़त इस देश ने बलिदानों से पाई थी
वो इज़्ज़त इन चंद नेताओं ने मिट्टी में मिलाई थी
जिस आज़ादी को सींचा था नौजवानों ने अपने ख़ून से
वो आज़ादी राष्ट्रपिता ने हमें भीख़ में दिलवाई थी

इन चंद पहलुओं का इतिहासकारों की नज़रों से बचना देखा
कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा


गुलामी से आज़ादी तक का सफ़र देखा
बीतते हुए वक्त का असर देखा
रग़ों के ख़ून को पानी होते देखा
देशभक्ति को दिलों की गहराईयों में सोते देखा
देखा सैनिकों के महान बलिदानों को
और राजनेताओं के झूठे एलानों को
देखा कश्मीर में चूहे भी शेर से पंगा ले सकते हैं
हमारे राजनेता तो सिर्फ गीदड़ भभकी दे सकते हैं
इस देश के नौजवान का ख़ून अभी लाल है
पर बदकिस्मती इस देश का हर राजनेता दलाल है
देश के हालात पर मेरे दिल का तड़पना देखा
कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा


सपने में देश का बदलता स्वरुप देखा
रात से सुबह तक नेताओं का बदलता रुप देखा
देश में अराजकता फ़ैलाने के गंदे इरादे देखे
जो पल में टूट जाएं, हरपल वो नए वादे देखे
अल्लाह और राम को भिड़ाने की ख्वाहिश देखी
भाई को भाई से लड़ाने की साजिश देखी
इस आग में जलते हुए मैंने आशियाना अपना देखा
कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश आपना देखा


कुछ सवाल भी थे इस सपने में...जो मेरे मन से उठे इस देश के युवाओं के लिए....


तुम्हारे कंधों में दम नहीं इस देश को चलाने के लिए
या इरादे की कमी है तुझमें कुछ दूर तक जाने के लिए
नौजवानों का ख़ून है क्या यूं ही बंट जाने के लिए
मैं हूं हिन्दू....मैं मुसलमान...मैं बिहारी...मैं मराठी
क्या यही गीत बचे हैं हम सब के गाने के लिए
तुम्हें क्या लगता है....
ये जवानी मिली है तुम्हें यू ही गंवाने के लिए
किसी की जुल्फ़ों की छांव में सो जाने के लिए
सावन की सी घटा में
इन प्रश्नों का मेरे दिल पर बरसना देखा
कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा....


देशभक्ति मैं क्या सिखाऊं तुमको, तुम ही मुझको सिखला दोगे
रगों में ख़ून है पानी नहीं, ये दुनिया को बता दोगे
इस देश की इज्जत को अब हम नहीं जाने देंगे
इन गद्दार राजनेताओं को और ख़ून नहीं बहाने देंगे
मुझे यकीन है उबाल आएगा नौजवानों के ख़ून में
लाखों कुर्बानियों को हम बेकार नहीं जाने देंगे
इस अहसास का आंखों से होकर दिल में उतरना देखा
कल रात मैंने एक सपना देखा
इस सपने में मैंने भारत देश अपना देखा


सोच बहुत लंबी थी और रात बहुत छोटी
मेरे सपनों की पालकी सुबह के आंगन में लौटी
पर आंख खुलते खुलते मैंने कुछ और भी देखा
भगत सिंह को फांसी का फंदा चूमते देखा
बिस्मिल को आज़ादी के जश्न में झूमते देखा
देखा चंद्र शेखर आज़ाद के बलिदान को
और देखा सुभाष चंद्र बोस महान को
सच पूछो तो यूं लगा जैसे इन आखिरी लम्हों में ही
शायद मैंने भारत देश अपना देखा
हां कल रात मैंने एक सपना देखा

Thursday, February 11, 2010

मदहोशी में मुहब्बत

मय जब दिमाग पर सवार हो और ख्यालों में मुहब्बत तो महज़ दो मिनट चालीस सैकेंड में शायरी के नाम पर क्या लिखा जा सकता है.....ये कल रात मैंने जाना। यकीन मानो ठीक दो मिनट और चालीस सैकेंड :-)

कौन सी कसक कब, कहां उठती है
किसे देखकर वो मदहोश निगाह झुकती है
ख्यालों से किसके हो जाते हैं बेचैन
धड़कन किसके इशारे पे चलती, ऱुकती है.....

ये तो दीवानगी भी नहीं जानती
कि वो किसके आगोश में रहती है
'अहसास' बस मुहब्बत का मारा है
ये मेरी हर सांस कहती है......

तूने किसे चाहा किसे इस्तेमाल किया
ये तो तेरी मुहब्बत को पता है
जो किसी का हो न सका कभी
वो भी तेरी इक निगाह में बंधा है.....

कौन सी कसक कब, कहां उठती है
किसे देखकर वो मदहोश निगाह झुकती है......

मैंने सोचा कि चाहत को तेरी
अपनी ज़िंदगी की तस्वीर बना लूं
तेरे मुकद्दर की हर आवाज़ को
अपनी हकीकत की तकदीर बना लूं......

मेरे दर पे इक फ़रियादी हमेशा ही रहा
जिसने तेरी चाहत को मुझसे मांग लिया
मैं देने में कभी भी कम न था
और वो मुझसे मांगता ही रहा.....

एक दिन बस यूं ही सोच रहा था मैं
कि मुहब्बत में किसकी है कितना नशा
उसकी निगाहों ने ये पूछा मुझसे
क्या चाहता हूं मैं तुम्हें उसी की तरह.....

मेरी निगाह शर्म से झुक सी गई
मेरे वकूफ़ ने मुझे इशारा भी किया
मैंने फिर खुद से वही पूछा......

कौन सी कसक कब, कहां उठती है
किसे देखकर वो मदहोश निगाह झुकती है
ख्यालों से किसके हो जाते हैं बेचैन
धड़कन किसके इशारे पे चलती, ऱुकती है......