खामोश लबों ने समझायी ज़िंदगी की रफ़्तार मुझे
यारों की महफ़िल में जब दूरियों का अहसास हुआ
उसके चेहरे की हंसी और चहक आज भी याद है
चुप से वो इस बार मिले तो दिल बहुत उदास हुआ
देखता रहा बेसब्र सी नज़रों से उसकी तरफ़
हर पल उसकी निगाह के उठने का इंतज़ार रहा
बस वही तो है ज़िंदगी में जिसका अहसान लिया
न चुका पाने का दर्द अब भी बरकरार रहा
वो ज़िंदगी में बहुत आगे निकल आये हैं शायद
हमें ही न जाने क्यों पुरानी यादों का एतबार रहा
ग़म की अब कोई दवा हो भी तो भला कैसे
न पहले सी बात रही, न पहले सा यार रहा.....
खामोश लबों ने समझायी ज़िंदगी की रफ़्तार मुझे
यारों की महफ़िल में जब दूरियों का अहसास हुआ
Monday, October 4, 2010
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1 comment:
nice attempt..
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