Saturday, July 18, 2009

पुराना हिसाब बाक़ी है.....

कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....
किसी की मुहब्बत को रुसवा किया था
शायद उसी ख़ता का अंजाम बाकी है...
जाम बिखरे हैं ज़िंदगी में ग़मों के
साथ देने को बस नहीं कोई साक़ी है
कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....


वो भी तो तडपी होगी एक अरसे तक
अब उसकी आहों का अहसास बाक़ी है
मैं जानता हूं मेरे नसीब में खुशी नहीं
अब तो बस मौत का इंतज़ार बाक़ी है
कभी किस्मत ने कहा नहीं मुझसे
लगता है कोई पुराना हिसाब बाकी है....
किसी की मुहब्बत को रुसवा किया था
शायद उसी ख़ता का अंजाम बाकी है...

Friday, July 17, 2009

ये कैसी उलझन?

ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर.....मगर मेरे दिल में समा रही है

दीदार जब उसका आंखों में नहीं था
मैं दिन का वो पल तलाश रहा हूं.....
जिसके ख्वाब से भी घबरा जाता हूं मैं
रात भर जागकर वो कल तलाश रहा हूं।
वो मेरी बाहों से दूर सांसे ले रही है
ये सोचकर ही मेरी नींद जा रही है......
ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर...मगर मेरे दिल में समा रही है

दर्द हद से बढ़ गया तो छलक रहा है
न जाने ये घड़ी कैसा इम्तिहान ले रही है...
खुदा का यकीन हुआ नहीं ताउम्र जिसे
वो ज़ुबान हर पल खुदा का नाम ले रही है।
ये उलझन कैसी जो ज़िंदगी की कडियां सुलझा रही है
वो जा रही है दूर...मगर मेरे दिल में समा रही है